बच्चों के समझना-सीखना और लिखना-पढ़ना शुरू करने से लेकर युवावस्था प्राप्त करने तक की अवस्था में तीन आयुवर्ग समाहित हैं : शिशु वर्ग (3 से 6 वर्ष), बाल वर्ग (6 से 12 वर्ष) तथा किशोर वर्ग (12 से 18 वर्ष)। यद्यपि हिन्दी में छपनेवाला बाल साहित्य इन तीनों वर्गों के बच्चों को पढ़ने के लिए दिया जाता रहा है, शिशु साहित्य और बाल साहित्य के बीच तो स्पष्ट सीमांकन मौजूद है, परंतु किशोर साहित्य की कोई अलग पहचान नहीं बन पाई है। मुझे यह जरूरी लगता है कि बाल साहित्य और किशोर साहित्य के बीच भी सुस्पष्ट रेखांकन हो, जिससे अब तक उपेक्षित से रहे किशोरों के लिए अनुकूल साहित्य की समुचित पहचान और संवर्द्धन हो सके।
कतिपय रचनाकार इस बात के खिलाफ हैं कि साहित्य में शिशु साहित्य, बाल साहित्य, किशोर साहित्य और गंभीर साहित्य जैसे किसी प्रकार के सीमांकन हों। उनकी नजर में विश्व की किसी भी भाषा में लिखा गया संपूर्ण श्रेष्ठ साहित्य किसी को भी पढ़ने के लिए दिया जा सकता है--लेकिन व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य में कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सता कि प्रत्येक व्यक्ति अपने मानसिक स्तर के अनुरूप ही कला के किसी रूप का आनंद ले सकता है।
वर्तमान समय में प्राय: रचनाकार इस बात से सहमत हैं कि 12-13 वर्ष की उम्र के सीमांकन को स्वीकार कर उससे पूर्व बाल मनोविज्ञान के अनुरूप 'बाल साहित्य' तथा तत्पश्चात किशोर मानसिकता के अनुकूल 'किशोर साहित्य' हमारे बाल-किशोर बच्चों को उपलब्ध कराया जाए।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteस्वागत करता हूँ ब्लोगिंग जगत में....बधाई व शुभकामनाएं ....
ReplyDeleteसुन्दर साज-सज्जा के साथ महती विचारों का संग...
ReplyDeleteसाधुवाद!!