Tuesday, July 13, 2010

हिन्‍दी में किशोर साहित्‍य पर पहली पुस्‍तक

हिन्‍दी में किशोर साहित्‍य पर विचार-विमर्श प्रस्‍तुत करनेवाली पहली पुस्‍तक 'हिन्‍दी किशोर साहित्‍य' 1953 ई. में नंदकिशोर एंड ब्रदर्स (वाराणसी) द्वारा प्रकाशित की गई थी, जिसकी लेखिका ज्‍योत्‍स्‍ना द्विवेदी हैं। ज्‍योत्‍स्‍ना जी द्वारा 1952 ई. में एम.एड. परीक्षा के लिए प्रस्‍तुत शोधप्रबंध का यह प्रकाशित रूप है। 214 पृष्‍ठों की इस पुस्‍तक में आठ अध्‍याय हैं--
(1) किशोर साहित्‍य का मनोवैज्ञानिक आधार
(2) हिन्‍दी में किशोर साहित्‍य का विकास
(3) हिन्‍दी में बाल तथा किशोर काव्‍य
(4) हिन्‍दी में बालोपयोगी तथा किशोरोपयोगी कहानियॉं
(5) नाटक, निबंध, जीवन-चरित्र तथा विविध साहित्‍य
(6) पत्र-पत्रिकाऍं
(7) काव्‍याभिरुचि निश्चित करने के प्रयोग, तथा
(8) हिन्‍दी में बाल तथा किशोर साहित्‍य का भविष्‍य
हालॉंकि पुस्‍तक में बाल-किशोर दोनों ही वर्गों के साहित्‍य पर विचार किया गया है, पर यदि सिर्फ किशोर साहित्‍य के संदर्भ में ही बात करें, तो लेखिका का एक समग्र दृष्टिकोण सामने आता है, जिसके अंतर्गत उन्‍होंने बालसाहित्‍य ही नहीं, वरन प्रौढ़ साहित्‍य की उन सामग्रियों पर भी विचार किया है, जो किशोर साहित्‍य मानी जानी चाहिए।
लेकिन हिन्‍दी के प्रख्‍यात बाल साहित्‍यकार डॉ. हरिकृष्‍ण देवसरे ने उक्‍त पुस्‍तक पर लिखे अपने समीक्षात्‍मक लेख में निम्‍नांकित टिप्‍पणी की है--''ज्‍योत्‍स्‍ना द्विवेदी की इस छोटी-सी पुस्‍तक की रूपरेखा निश्‍चय ही यह आशा बँधाती है कि उस समय तक लिखे किशोर साहित्‍य का इसमें गंभीर विवेचन होगा, किन्‍तु वास्‍तव में यह पुस्‍तक निराश अधिक करती है। पुस्‍तक के पहले अध्‍याय में किशोरावस्‍था के मनोविज्ञान का निश्‍चय ही गंभीरता से विवेचन किया गया है, किन्‍तु जैसे ही किशोर साहित्‍य की चर्चा शुरू होती है, वहीं से विषय-विवेचन गड्डमड्ड होने लगता है। कारण यह है कि बाल साहित्‍य और किशोर साहित्‍य में तब अंतर करने में लेखिका असमर्थ दीखती है। यहॉं हम बाल साहित्‍य उसे कह रहे हैं, जो शिशु और दस-बारह वर्ष के बच्‍चों के लिए लिखा गया हो। इसके बाद से किशोरावस्‍था शुरू होती है।'' (किशोर साहित्‍य की संभावनाऍं, सं; देवेन्‍द्र कुमार देवेश, 2001, पृष्‍ठ 26)

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